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यूपी की जमीनी हकीकत को समझे भाजपा
योगेश जादौन
Publised on : 18 April 2016,  Last updated Time 23:38                     Tags: BJP, Yogesh Jadon

Yogesh Jadonदेशी कहावत है ‘बिच्छू का मंत्र नहीं आता और सांप के बिल में हाथ देने चले।’ देशी इसलिए कि कभी स्वदेशी-स्वदेशी चिल्लाने वाली भाजपा को आज न तो देशी भाव समझ में आ रहे हैं और न भंगिमा। उसकी भाव-भंगिमा दोनों ही बिगड़ी हुई हैं। दिल्ली के बाद बिहार ने उसकी हालत ने उसका संतुलन बिगाड़ दिया है। रही सही कसर पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के परिणाम पूरे कर देंगे। ऐसे में अगर उसे उत्तर प्रदेश की सत्ता का भवसागर पार करना है तो उसे अपने ‘दो का दम’ पर इतराना बंद कर देश की मनोदशा को ठीक से समझना होगा। भाजपा जो एक लंबे समय से प्रदेश की राजनीति के हाशिए पर उसे यह समझना होगा कि नई बीमारियों का इलाज वह पुराने मंत्रों सं नहीं कर सकती है। लोकसभा चुनाव को वह जिन टोना-टोटको से जीते वह यूपी की जमीन पर अब काम आने वाले नहीं हैं। यूपी की जमीनी जरूरतों, जातीय जिद और जिल्लत को उसे समझना होगा।
भाजपा नेतृत्व के जरूरत से ज्यादा जोश और सतही राजनीति के खेल में विश्वास ने उसे छात्रों को गुस्से के एक ऐसे चक्र में उलझा दिया है जिसने भाजपा की भंगिमा को भंग कर दिया है। यही नहीं भाजपा भूल गई उसके नेतृत्व में तमाम ऐसे नाम हैं जो छात्र आंदोलन की ही उपज हैं ऐसे में उसने बेवजह छात्रों के उस मामले को तूल देने की जिद की जिसकी अन्यथा जरूरत ही नहीं थी। उसकी इस भूल ने दलित और पिछड़ों के एक ऐसे वर्ग को अपने उस फैसले पर पुनर्विचार पर बाध्य किया है जो वह लोकसभा चुनाव के दौरान कर चुके थे। भाजपा भी जानती है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उसकी ऐतिहासिक जीत के पीछे इस वर्ग के वोट का भी अहम रोल रहा। काला धन, विकास, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, विदेशी संबंध और हर बात पर 60 साल के जुमले ने उसकी भंगिमा को पहले ही बिगाड़ और भाव तो पहले से ही आसमान पर हैं।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर जिस तरह फैसला किया है उससे लगता है उसने कोई सबक नहीं लिया है। लगता है ‘दो के दम’ की बिगड़ी भाव-भंगिमा उसके नेतृत्व के बीच शार्ट सर्किट करने पर तूली है। ऐसा होता है तो यह शार्ट सर्किट यूपी में उसे बड़ा झटका दे सकता है। वह न तो जमीनी जरूरतों पर जोर देती दिख रही है और न ही अपने कार्यकर्ताओं की टीम से कोई राय मशविरा करती दिख रही है। भाजपा के अंदर और बाहर भी यह बात कही जा रही है कि नए अध्यक्ष के चयन में राजनाथ सिंह की मंशा को अहमियत दी गई है। शायद राजनाथ पूर्वी यूपी में अपनी साख को बचाना चाहते हैं। मगर वह भूल रहे हैं कि जिस चेहरे को वह पार्टी नेतृत्व की बागडोर दे रहे हैं उसे पश्चिमी और सेंट्रल यूपी में उनके कार्यकर्ता भी भली तरह से नहीं जानते हैं। यह तब है जब भाजपा के पास इससे भी बेहतर विकल्प मौजूद थे।
उनके पास अनुभवी नेता के तौर पर उमा भारती थी जो न केवल जाना-पहचाना नाम है बल्कि उस वर्ग से भी आती हैं जो भाजपा की नैया यूपी में पार लगाने में कई बार साथ दे चुकी है। कल्याण सिंह के बाद उमा भारती यूपी में लोधी वोट और पिछड़ों में जोड़ने की एक बड़ी मुहिम बन सकती। यही नहीं उनकी पकड़ उस बुंदेलखंड पर भी है जिसे बसपा का यूपी में गढ़ माना जाता रहा है। गौर करने की बात है कि बुंदेलखंड में बसपा की जीत का अंतर 5 पांच हजार वोट से अधिक का नहीं रहा। ऐसे में उमा भारती एक बड़ा काम कर सकती थीं।
दूसरा विकल्प था रामशंकर कठेरिया का। अपने तेज तेवर के कारण आज वह न केवल केंद्र सरकार में मंत्री है बल्कि युवा ऊर्जा से भी भरे हुए हैं। उन्हें लगभग पूरे यूपी में लोग जानते हैं और पश्चिमी यूपी में उनका दबदबा भी है। नेतृत्व के लिहाज से वह आरएसएस से आते हैं और पिछड़ी जाति से होने के कारण वह भाजपा वोट बैंक का गणित भी पूरा करते।
तीसरा दमदार विकल्प था स्वतंत्र देव सिंह का। यह वह नाम है जिसे भाजपा पार्टी के अंदर किसी पहचान की जरूरत नहीं है। यही नहीं बुंदेलखंड के अंदर उनका दमदार आधार है। वह भाजपा के उन कुछेक नेताओं में शामिल हैं जो उस दौर में भी सक्रिय रहे जब प्रदेश और देश में पार्टी हाशिए पर खड़ी थी। यही नहीं यूपी के हर जिले में कार्यकर्ताओं के बीच उनका नेटवर्क है और उनके पास लंबी टीम है। पार्टी नेतृत्व ने एक झटके में उन नामों को खारिज कर एक ऐसे नाम को वरीयता दी जिसे पार्टी के अंदर ही ठीक से पहचान नहीं मिली है। ऐसे में यह तो साफ है कि पार्टी अभी भी कुछ ही नामों की दम पर इतराने और यूपी की जंग जीतने का ख्बाव देख रही है। उसकी शक्ति का यह स्वांग एक बड़ा शार्ट सर्किट करने जा रहा है जो पार्टी को बड़ा झटका देगा

News source: U.P.Samachar Sewa

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