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New Delhi ,
नई दिल्ली (इंविसंके). आर्ट ऑफ लिविंग
द्वारा आयोजित विश्व सांस्कृतिक महोत्सव
का शुभारम्भ 11 मार्च को दिल्ली में यमुना
तट पर श्रीश्री रविशंकर जी के सान्निध्य
में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा
किया गया. अपनी तरह के इस विलक्षण भव्य
समारोह की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार और
सांस्कृतिक नृत्य से हुई. विद्वानों द्वारा
यमुना किनारे विश्व शांति और पर्यावरण से
जुड़े वेद मंत्रों का पाठ किया गया. आर्ट
ऑफ लिविंग के आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री
रविशंकर जी ने विश्वभर से आये अपार समूह
संबोधित करते कहा कि जीवन जीने की कला एक
सिद्धान्त है, एक संस्था से अधिक एक
आंदोलन है. जीवन में शक्ति, भक्ति, मुक्ति,
युक्ति को प्राप्त करने के लिए एक प्रयास
है. दिलों को दिलों से जोड़ने की एक अनूठी
कला है.
उन्होंने बताया कि दुनिया के लोगों को एक
साथ लाने तथा जोड़ने के पांच माध्यम हैं,
उसमें क्रीड़ा, खेल-कूद सबसे पहले है.
बच्चा पैदा होते ही खेलने लगता है, खेल एक
ऐसा माध्यम है जो सार्वजनिक है,
सार्वकालिक है, सबको जोड़ता है. इसके बाद
कला, विचार, व्यापार और आध्यात्म यह पांच
जो क्षेत्र हैं वो मानव जाति को एक सूत्र
में बांधते हैं. विश्व एक परिवार हो, भारत
में यह सपना हम देखते रहे हैं, आज यह लग
रहा है, यह साकार हो उठा है. वसुधैव
कुटुम्बकम, हम सब एक हैं. श्रीश्री जी ने
कहा कि कथनी करनी में भेद न हो, भीतर बाहर
सुकून पैदा हो, इसीलिए सब यहां आए हैं.
अपने भीतर झांक कर देखिए कि जो मुझमें है,
वही सब में है. खुशी की, आध्यात्म की यह
जो लहर है, उसे हमें लेकर निकलना है. यही
एक उद्देश्य आप सब लोगों का हो. आप जितना
प्यार समाज को देते हो, आपके पास वह सौ
गुना लौट के आता है. समष्टि को अपने में
समेटने की एक कला यदि है तो वो अध्यात्म
है. इस आध्यात्म की लहर को पूरी दुनिया
में फैलाओ.आयोजन
स्थल पर हुए विवाद पर कहा कि किसी ने कहा
कि यह गुरुजी की प्राइवेट पार्टी है तो
हमने कहा ‘बिलकुल’, क्योंकि सारा संसार
मेरा परिवार है, वसुधैव कुटुम्बकम, तब तो
यह प्राइवेट पार्टी ही हुई, वह सच बोलते
हैं. जब अपने लिए कुछ नहीं चाहिए तो सब
कुछ अपना हो जाता है. तब सारा संसार हमारा
अपना हो जाता है. व्यक्तिगत जीवन अलग नहीं
है और सामाजिक जीवन या सार्वजनिक जीवन अगर
अलग देखेंगे तो कमी लगेगी जीवन में. जब
दिल में कोई भेद नहीं है तो जीवन में आपको
दोष रहित ज्योति दिखेगी, उसी ज्योति से यह
सारा संसार बसा है. मौन और ऊर्जा यह दोनों
साथ चलते हैं, हमने जाना है कि जीवन
संघर्ष है, मगर उसको मोर्चों में बदलना एक
कला है, आप सब इस उत्सव को रंग दे रहे
हैं, यहां पर दूर-दूर से इतने युवा आए
हैं, कुछ प्रज्ञा चक्षु बच्चे भी यहां आए
हैं. कुछ गलत करना हो तो कुछ विघ्न नहीं
आता मगर कुछ बहुत मुख्य काम करना हो तो
विघ्न आते ही हैं. लेकिन वो सब विघ्न गौण
होकर आखिर में उसका फल बहुत मधुर होता है.
उन्होंने आह्वान किया कि मुस्कुराते रहो,
सबको गले लगाते रहो, जो मुसीबत आए उसको
पूरी हिम्मत से झेलते जाओ और जानते जाओ कि
यह तो कुछ भी नहीं है. जो सबका है, वह
हमारा अपना है, यह सार्वदेशिक, सार्वकालिक,
सार्वभौमिक जाना हुआ सत्य है. जिसको हमने
जीवन में अपनाया. इस सुगंध को हम औरों तक
फैलाते जाएंगे, यहां दूर-दूर से, विश्वभर
से आए सब लोगों का मैं स्वागत करता हूं,
कि वह अपने घर आए हैं, यह आध्यात्मिक घर
है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
जी ने विश्व भर से विश्व सांकृतिक उत्सव
में आये प्रतिनिधियों का स्वागत करते
जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत
इतनी विविधताओं से भरा हुआ है कि विश्व को
देने के लिए भारत के पास क्या कुछ नहीं
है. दुनिया सिर्फ आर्थिक हितों से ही जुड़ी
हुई है, ऐसा नहीं है. दुनिया मानवीय
मूल्यों से भी जुड़ सकती है और जोड़ा जा
सकता है और जोड़ना भी चाहिए. भारत के पास
वो सांस्कृतिक विरासत है, वो सांस्कृतिक
अधिष्ठान है, जिसकी तलाश दुनिया को है. हम
दुनिया की इन आवश्यकताओं को कुछ न कुछ
मात्रा में, किसी न किसी रूप में परिपूर्ण
कर सकते हैं. लेकिन यह तब हो सकता है, जब
हमें हमारी इस महान विरासत पर गर्व हो,
अभिमान हो. अगर हम ही अपने आपको कोसते
रहेंगे, हमारी हर चीज की हम बुराई करते
रहेंगे, तो दुनिया हमारी ओर क्यों देखेगी.
मैं श्रीश्री रविशंकर जी का इस बात के लिए
अभिनन्दन करता हूं कि 35 साल के छोटे से
कार्यकाल का यह मिशन दुनिया के 150 से
ज्यादा देशों में इसी ताकत के भरोसे अब
फैल चुका है, उन देशों को अपना कर चुका
है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा
कि आर्ट ऑफ लिविंग के माध्यम से विश्व को
भारत की एक अलग पहचान कराने में इस कार्य
ने बहुत बड़ा योगदान किया है. कुछ समय पहले
जब मैं मंगोलिया गया था तो मैं हैरान था,
मंगोलिया में एक स्टेडियम है, आर्ट ऑफ
लिविंग के सभी बंधुओं द्वारा मेरा स्वागत
रखा गया. उसमें भारतीय तो बहुत कम थे, पूरा
स्टेडियम मंगोलियन नागरिकों से भरा हुआ
था. भारत का तिरंगा झंडा हाथ में लेकर के
जिस प्रकार से उन्होंने भारतीय संस्कृति
का परिचय करवाया, यह अपने आप में बहुत ही
प्रेरक था. उन्होंने कहा कि जहां पर राज
शक्ति और राज सत्ता की पहुंच नहीं होती
है, ऐसे स्थानों पर भी अंतर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों में सॉफ्ट पावर एक बहुत बड़ी
अहम भूमिका अदा करता है. आज हम एक ऐसे
कुम्भ मेले का दर्शन कर रहे हैं, जो कला
का कुंभ मेला है. भारत के पास ऐसी समृद्धि
थी कि यहां कला पूर्वतः विकसित हुई. यह
धरती ऐसी है,
जहां हर पहर का संगीत अलग
है, सुबह का संगीत अलग है तो शाम का अलग
है. इसीलिए बाजार में अगर संगीत की दुनिया
को खोजने जाएंगे तो तन को डुलाने वाले
संगीत से तो विश्व का बाजार भरा पड़ा है,
लेकिन मन को डुलाने वाला संगीत तो
हिन्दुस्तान में भरा पड़ा है. दुनिया अब
मन को डुलाना चाहती है और यही संगीत की
साधना है जो दुनिया के मन को डुला सकती
है.
जब कला के
द्वारा किसी देश को देखा जाता है तो उस
देश की अंर्तभूत ताकत को पहचाना जाता है.
भारत की कला की शक्ति और कला साधना सदियों
से करते आए लोग आज विश्व को एक अनमोल भेंट
दे रहे हैं. ऐसे अवसर पर यह समारोह जहां
प्रकृति ने भी कसौटी रखी, लेकिन यही तो
आर्ट ऑफ लिविंग है, सुविधा और सरलता के
बीच जीने के लिए जी सकते हैं, उसमें आस नहीं
होती. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा
कि जब अपने इरादों को लेकर चलते हैं तब
आर्ट ऑफ लिविंग चाहिए, जब अपने सपनों को
लेकर चलते हैं तब आर्ट ऑफ लिविंग चाहिए,
जब संकटों से जूझते हैं तब आर्ट ऑफ लिविंग
चाहिए, जब अपने लिए नहीं औरों के लिए जीते
हैं तब आर्ट ऑफ लिविंग चाहिए, जब स्व से
समष्टि की यात्रा करते हैं तब आर्ट ऑफ
लिविंग चाहिए, जब मैं से छूटकर हम की ओर
चलते हैं तब आर्ट ऑफ लिविंग चाहिए. हम वो
लोग हैं जो अहम ब्रह्म से शुरु करते हैं
और वसुधैव कुटुम्बकम की यात्रा करते हैं.
यह आर्ट ऑफ लिविंग है. हम वो लोग हैं
जिन्होंने उपनिषद से उपग्रह तक की यात्रा
की है. यही जीवन जीने की कला हमारे
ऋषि-मुनियों ने, ज्ञानियों-तपस्वियों ने
हमें विरासत में दी है.
उन्होंने
बताया कि संकटों से जूझ रहा मानव,
व्यक्तिगत जीवन में समस्याओं से जूझ रहा
आम आदमी, भारत की पारिवारिक संस्था-
परिवार, फैमिली, यह ऐसी धरोहर है जो इससे
उबरने की कला जानती है. दुनिया के देशों
को इससे अचरज होता है. हमने यह कला सीख ली
है, सदियों से सीखी है, लेकिन अगर उसमें
खरोंच आ रही है तो उसको फिर से ठीक-ठाक
करने की आवश्यकता है. उन्होंने श्रीश्री
रविशंकर जी के माध्यम से चलाये जा रहे इस
कार्य का अभिनन्दन करते हुए शुभकामनाएं
दीं तथा सभी कलाकारों, साधकों, आर्ट ऑफ
लिविंग के कार्यकर्ताओं को इस भव्य समारोह
द्वारा भारत की एक विशिष्ट छवि विश्व के
सामने पहुंचाने के लिए बधाई दी.
गणेश वंदना
और 1 हजार 50 पंडितों के वैदिक
मंत्रोच्चार से विश्व सांस्कृतिक उत्सव की
औपचारिक शुरुआत हुई. समारोह में 34 देशों
के प्रतिनिधियों अपने विचार रखे तथा 150
देशों के प्रतिनिधियों ने पत्र द्वारा
विचार भेजे. भारत सहित अलग-अलग देशों से
आए कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम और
नृत्य प्रस्तुति दी. जिनमें 9 संगीत रचनाओं
को प्रस्तुत किया गया. इसमें 50 तरह के
वाद्य यंत्र बजाए गए. 10 हजार वाद्ययंत्रों
से समारोह स्थल गूंज उठा. 1700 कलाकारों
ने कत्थक नृत्य पेश किया, इतने ही कलाकारों
ने भरतनाट्यम प्रस्तुत किया. 1500 कलाकारों
ने मोहिनीअट्टम और कथकली नृत्य सामूहिक
रूप से प्रस्तुत किया. बारिश के कारण
कार्यक्रम शुरू होने में देरी हुई. लेकिन
उसके बाद खुशनुमा मौसम में उद्घाटन समारोह
संपन्न हुआ. |